आईआईटीयन बाबा अभय सिंह की कहानी सच में दिलचस्प और प्रेरणादायक है. यह उनके जीवन के एक बड़े मोड़ को दर्शाती है, जहां उन्होंने शैक्षिक और पेशेवर सफलता के बावजूद आध्यात्मिकता की ओर रुख किया. महीने की तीन लाख की सैलरी छोड़कर उनका यह बदलाव इस बात का प्रतीक है कि हर व्यक्ति की यात्रा अलग होती है और जीवन के विभिन्न पहलुओं से प्रभावित होती है.


यह भी सच है कि समाज में अक्सर ऐसे बदलावों के पीछे व्यक्तिगत या मानसिक कारण होते हैं, जैसे कि प्रेम में धोखा या अवसाद, जो लोगों को अपने जीवन की दिशा बदलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. हालांकि, हर व्यक्ति का आध्यात्मिक रास्ता अलग होता है, और इसमें शांति, संतोष और एक गहरे आत्मिक अनुभव की खोज होती है.


महाकुंभ जैसे अवसर पर ऐसे साधु-संतों का शामिल होना उनके आस्थाओं और विश्वासों को बढ़ावा देता है और समाज को यह सोचने का मौका देता है कि व्यक्ति की पहचान केवल बाहरी परिस्थितियों से नहीं बनती, बल्कि उसकी आंतरिक शांति और संतुलन से भी बनती है. इस प्रकार, इंजीनियर बाबा का अनुभव यह सिखाता है कि जीवन में हर मोड़ पर व्यक्ति को अपनी आत्मा की सुननी चाहिए और सच्चे मार्ग की पहचान करनी चाहिए, चाहे वह विज्ञान हो या धर्म.


जानिए कौन हैं इंजीनियर बाबा अभय सिंह


इंजीनियर बाबा अभय सिंह, जिनका असली नाम अभय सिंह है, हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले हैं. उनके मुताबिक, उन्होंने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में अपनी शिक्षा पूरी की. इस दौरान उन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत से IIT में दाखिला लिया और फिर वहां से अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की. उनका कहना है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने एक प्रमुख कंपनी से लाखों रुपये का नौकरी का ऑफर प्राप्त किया था, और कुछ समय तक उन्होंने उस कंपनी में काम भी किया. लेकिन कुछ समय बाद, अभय सिंह ने इस ग्लैमरस और भौतिक रूप से आकर्षक जीवन को छोड़कर एक और रास्ता चुना.


कनाडा तक में की नौकरी फिर लौटे इंडिया 


अभय सिंह ने एबीपी न्यूज से बातचीत में बताया कि इंजीनियरिंग के दौरान उन्होंने ह्यूमैनिटी से जुड़े कई विषय पढ़े, जिनमें फिलॉसॉफी से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया. जीवन का असली अर्थ समझने के लिए उन्होंने नवउत्थानवाद, सुकरात, प्लेटो जैसे दार्शनिकों के लेख और किताबें पढ़ीं. इस दौरान उनका रुझान डिजाइनिंग की तरफ बढ़ा, और इसके लिए उन्होंने एक साल तक फिजिक्स की कोचिंग ली. हालांकि, इस क्षेत्र में भी उनका मन नहीं लगा.


अभय ने दो साल तक डिजाइनिंग की पढ़ाई की, लेकिन फिर उनकी नौकरी फोटोग्राफी से जुड़ी थी, जिसमें उन्हें अलग-अलग जगहों पर यात्रा करके तस्वीरें खींचनी पड़ती थीं. हालांकि, शुरुआत में यह काम उन्हें अच्छा लगा, लेकिन कुछ समय बाद उनका मन भी इसमें नहीं लगा और वे जीवन का उद्देश्य नहीं पा सके. इसके बाद वह मानसिक दबाव और डिप्रेशन में भी रहने लगे. इस दौरान उनकी बहन ने उन्हें संभाला और कनाडा बुलाया, जहां उन्होंने एक बार फिर से नौकरी की शुरुआत की. लेकिन वहां भी उन्हें जीवन जीने का वास्तविक उद्देश्य और कारण नहीं मिला.


पैदल की चार धाम की यात्रा 


अभय सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान कई धार्मिक स्थानों का दौरा किया, लेकिन इसके बावजूद वह फिर भी मानसिक रूप से डिप्रेशन का शिकार हो गए. कोरोना के बाद, उन्होंने भारत लौटने का निर्णय लिया और यहां आकर उन्होंने विभिन्न आध्यात्मिक विधाओं की पढ़ाई शुरू की. इस नए अध्याय के बाद, उन्हें जीवन की एक नई दिशा मिली. समय मिलने पर उन्होंने पैदल चारों धाम की यात्रा की और उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश के विभिन्न धार्मिक स्थानों की यात्रा की, जहां उन्होंने जीवन को समझने और आत्म-संवेदन का प्रयास किया. इन यात्राओं ने उन्हें आंतरिक शांति और संतुलन की तलाश में मार्गदर्शन दिया.


अब इंजीनियर बाबा ने अपनी पूरी जिंदगी भगवान शिव को समर्पित कर दी है. उन्होंने बताया कि 'अब मुझे आध्यात्मिकता में सच में सुख और शांति मिल रही है. मैं अब साइंस के माध्यम से आध्यात्म को समझने की कोशिश कर रहा हूं और उसकी गहराइयों में जा रहा हूं. सब कुछ शिव है. सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है.'


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