जिस जमीन पर कभी वेदों की ध्वनि गूंजी, जहां बुद्ध ने करुणा का संदेश दिया और जहां संस्कृत का पहला स्वर फूटा, आज वही भूमि इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान कहलाती है. यह सवाल चौंकाता है कि क्या पाकिस्तान कभी हिंदू राष्ट्र था, और अगर नहीं, तो वह इस्लामी देश कैसे बन गया. इसका जवाब इतिहास, धर्म और राजनीति, तीनों के मेल में छिपा है. कैसे आइए जानते हैं.


आज का पाकिस्तान वही भूभाग है जिसे वेदों में सप्तसिंधु प्रदेश कहा गया है. सिंधु घाटी की सभ्यता, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, तक्षशिला, इस धरती पर फली-फूली. यहां यज्ञ हुए, ऋषियों ने तप किया, और बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ.


यह क्षेत्र मूल रूप से भारतीय संस्कृति का हिस्सा था, लेकिन समय के साथ धर्म और सत्ता दोनों बदलते गए. आठवीं शताब्दी में अरब सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध पर आक्रमण किया.


राजा दाहर ने वीरता से लड़ा लेकिन पराजित हुए, और पहली बार इस भूमि पर इस्लामी शासन स्थापित हुआ. इसके बाद ग़जनवी, गौरी, लोधी और मुगलों के शासन में इस्लामी संस्कृति गहराई तक फैल गई.


आग और लहू से सना इतिहास!


ब्रिटिश राज के दौर में हिंदू और मुस्लिम साथ तो रहते थे, लेकिन उनके बीच अविश्वास की दीवारें खड़ी हो चुकी थीं. 1906 में बनी मुस्लिम लीग ने यह घोषणा की कि मुसलमानों को हिंदू बहुल भारत में अपनी अलग पहचान चाहिए. यहीं से शुरू हुआ दो राष्ट्र सिद्धांत, वह विचार जिसने एक नई त्रासदी की नींव रखी.


मोहम्मद अली जिन्ना ने इसे इस्लामी अस्तित्व का प्रश्न बना दिया, जबकि गांधी और नेहरू अखंड भारत की बात करते रहे. 1940 के लाहौर प्रस्ताव ने मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए अलग राष्ट्र की मांग को औपचारिक रूप दिया, और सात साल बाद 1947 में वह सपना खून के सैलाब में सच हो गया.


विभाजन के समय पंजाब और बंगाल जल उठे. लगभग दस लाख लोग मारे गए और एक करोड़ से अधिक विस्थापित हुए. सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के वे इलाके जो पहले हिंदू और सिखों से आबाद थे, खाली हो गए. मंदिरों की घंटियां शांत गईं, अजान की गूंज ने जगह ले ली. 1947 में पाकिस्तान के इन हिस्सों में हिंदू आबादी लगभग 15 प्रतिशत थी, लेकिन 1951 की जनगणना तक यह घटकर दो प्रतिशत से भी कम रह गई.


1956 में पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक रिपब्लिक घोषित कर दिया. धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को संवैधानिक रूप से खारिज कर दिया गया. जिया-उल-हक़ के शासन में शरीयत कानून लागू हुआ, और इस्लाम को राजनीति व न्याय प्रणाली की जड़ में बैठा दिया गया. इस्लामीकरण की इस प्रक्रिया ने पाकिस्तान को पूरी तरह एक धार्मिक राष्ट्र में बदल दिया, जबकि भारत ने समानांतर रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य का मार्ग चुना.


आज पाकिस्तान में हिंदू आबादी करीब 1.8 प्रतिशत रह गई है. वे ज्यादातर सिंध के थरपारकर और मीरपुरखास जैसे इलाकों में रहते हैं. कई मंदिर Heritage Sites घोषित हैं लेकिन पूजा की स्वतंत्रता सीमित है. जिन परिवारों की जड़ें सदियों से वहीं थीं, उन्होंने या तो पलायन किया या सहम कर रहना सीखा.


धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः


मनुस्मृति का श्लोक याद आता है, धर्म एव हतो हन्ति, धर्मो रक्षति रक्षितः. अर्थात् जो धर्म का नाश करता है, वही नष्ट होता है. जो उसकी रक्षा करता है, वही जीवित रहता है. पाकिस्तान का इतिहास इसी सत्य का जीवंत उदाहरण है. भारत ने धर्म को राजनीति से अलग रखा, जबकि पाकिस्तान ने धर्म को ही राजनीति बना दिया.


इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान कभी हिंदू राष्ट्र नहीं था, लेकिन वह जरूर हिंदू संस्कृति की भूमि था. उसकी मिट्टी में वैदिक युग की गंध थी, उसकी नदियों में वेदों का इतिहास बहता था.


समय, सत्ता और सिद्धांतों ने उस पहचान को मिटा दिया. सीमाएं बदल गईं, पर मिट्टी वही है, जो अब भी शायद पूछती है, मैं कौन हूं, सिंधु की भूमि या इस्लामी गणराज्य? कभी इस धरती पर दीपक जलता था, अब बस अजान की गूंज है, इतिहास का यह विरोधाभास ही पाकिस्तान की असली कहानी है.


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