US Recession: इस समय दुनियाभर में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की काफी चर्चा हो रही है. उसकी खास वजह भी है. जब अमेरिका में मंदी की आहट होती है तो उसकी धमक पूरे विश्व में गूंजती है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से टैरिफ लगाए जाने के चलते वैश्विक व्यापार में आए दबाव के बीच भारत दोनों ही देश चीन और अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों पर कदम सामान्य बनाने का प्रयास कर रहा है. ऐसी स्थिति में अगर अमेरिकी में मंदी आती भी है तो इसका भारत के ग्रोथ रेट पर बहुत ही कम असर पड़ने वाला है.


आइये जानते हैं कि अर्थशास्त्री और निवेशक इसको लेकर क्या कुछ कह रहे हैं-


 1- मंदी अमेरिका के कितने पास?


रायटर्स के इकॉनोमिस्ट पोल में 7 अप्रैल को कहा गया कि अगले 12 महीने में मंदी आने की 45 फीसदी संभावना है, जो दिसंबर 2023 के बाद सबसे ज्यादा है. इसकी वजह है 2025 को लेकर जीडीपी का पूर्वानुमान और कैपेक्स प्लान का गिरना. मूडी के विश्लेषक मार्क जिंदी मार्च 2025 के पॉडकास्ट में कहा कि 2025 के आखिर तक मंदी की करीब 40 फीसदी संभावना है. ब्लूमबर्ग के ओपिनयन में ऑथर जॉन ने कहा कि 2008 की गलत नीति की तरफ से वैसे फैसले लिए जा रहे हैं.


2-क्या अमेरिकी मंदी से आएगी वैश्विक मंदी?


अमेरिका में अगर मंदी आती है तो उसका असर उस स्थिति में वैश्विक होगा जब 2008 की तरह वित्तीय झटका लगेगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर इसका असर कम होगा. आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने वैश्विक मंदी की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि साल 2001 में आयी अमेरिकी मंदी का वैश्विक स्तर पर असर नहीं हुआ था. दुनिया की जीडीपी 2.5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही थी, लेकिन व्यापारिक ग्रोथ गिर गया था.


2007-09 के बीच वैश्विक मंदी छाई थी, जो पहला विश्व युद्ध के बाद पहली बार वैसी स्थिति बनी, जब जीडीपी 2009 में 1.3 प्रतिशत पर चली गई थी. हालांकि 2020 में लॉकडाउन की वजह से वैश्विक जीडीपी 3 प्रतिशत पर आ गई थी, जो 1945 के बाद पहली बार ऐसा हुआ. जाहिर है अगर ऐसी स्थिति में अमेरिका में मंदी आती भी है तो एक्सपर्ट्स का यही मानना है कि भारत पर कम से कम असर होगा.


ये भी पढ़ें: आ गई EPFO 3.0 को लेकर बड़ी न्यूज़, अब एटीएम से ही निकलेगा पैसा, जानें कब से मिलेगी ये सुविधा