जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने भोपाल में एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट को लेकर जो बयान दिया, उस पर बवाल मच गया है. मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट उस समय तक ही सुप्रीम कहलाने का हकदार है, जब तक आईन की पाबंदी करे और कानून के कर्तव्य का ख्याल रखे. अगर ऐसा न करे तो वह नैतिक तौर पर सुप्रीम कहलाने का हकदार नहीं है. उनके इस बयान पर ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के मुखिया मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी का रिएक्शन आया है.
मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि भारत के करोड़ों मुसलमान उनके बयान से सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा, "मौलाना महमूद मदनी एक धार्मिक व्यक्ति हैं. उन्हें धार्मिक दृष्टिकोण से बोलना चाहिए. उन्हें मुसलमानों को भड़काना नहीं चाहिए. करोड़ों मुसलमान सुप्रीम कोर्ट, संसद और सरकार पर भरोसा करते हैं."
#WATCH | On Jamiat Ulama-i-Hind president Maulana Mahmood Madani's speech in Bhopal, National President of All India Muslim Jamaat, Maulana Shahabuddin Razvi Barelvi says, "Not just me but crores of Muslims in India do not agree with his statement. Maulana Mahmood Madani is a… pic.twitter.com/i2p8YKBZUS
— ANI (@ANI) November 29, 2025
मौलाना मदनी ने जिहाद शब्द को लेकर उठाए जा रहे सवालों पर भी आपत्ति जताई थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की नेशनल गवर्निंग बॉडी मीटिंग में उन्होंने कहा कि जिहाद, इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों ने जिहाद जैसे इस्लाम के पवित्र विचारों को गलत इस्तेमाल, गड़बड़ी और हिंसा से जुड़े शब्दों में बदल दिया है.
'जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा'
महमूद मदनी ने कहा कि लव जिहाद, लैंड जिहाद, एजुकेशन जिहाद और थूक जिहाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके मुसलमानों को बहुत दुख पहुंचाया जाता है और उनके धर्म का अपमान किया जाता है. उन्होंने कहा कि सरकार और मीडिया में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. उन्हें न कोई शर्म नहीं आती और न ही उन्हें पूरे समुदाय को चोट पहुंचाने की परवाह है.
असुरक्षित महसूस कर रहे मुसलमान: मदनी
मदनी ने कहा, "आज मुसलमान रास्ते पर अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं. उन्हें कदम-कदम पर नफरतों का सामना करना पड़ता है. अब हमें तैयार भी होना पड़ेगा. घर वापसी के नाम पर किसी खास धर्म में शामिल करने वालों को खुली छूट हासिल है. उन पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता है और न ही कानूनी कार्रवाई होती है. यह पूरी तरह से दोहरा रवैया है."
महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के ऊपर सवाल उठाते हुए कहा, "किसी देश में लॉ एंड ऑर्डर और क्राइम-फ्री समाज बनाना इंसाफ के बिना नामुमकिन है. दुख की बात है कि पिछले कुछ सालों में खासकर बाबरी मस्जिद और ट्रिपल तलाक जैसे मामलों में फैसलों के बाद यह आम सोच बन गई है कि कोर्ट सरकारी दबाव में काम कर रहे हैं. अल्पसंख्यकों से जुड़े संवैधानिक नियमों और बुनियादी सिद्धांतों की कई व्याख्याओं ने न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं."
