Bihar Shapath Muhurat 2025: भारत में सत्ता भले विधानसभा के आंकड़ों से तय होती हो, लेकिन उसकी आयु अक्सर उस क्षण से प्रभावित मानी जाती है जब नया मुख्यमंत्री शपथ लेता है. राजनीतिक निर्णयों की भीड़, मीडिया की भाग-दौड़ और गठबंधन-समीकरणों की चमक के बीच एक तत्व हमेशा पृष्ठभूमि में काम करता रहता है मुहूर्त, यानी वह सही समय जब सत्ता का नया अध्याय आरंभ किया जाता है. ज्योतिष की परंपरा मानती है कि राज्य का जन्म उसी समय होता है और वही क्षण आगे चलकर पूरे शासन की दिशा और स्थिरता का आधार बन जाता है.


इसी कारण शपथ ग्रहण की तारीख़ कभी भी सामान्य नहीं होती. पुराने राजदरबारों में इसे गुप्त गणनाओं से तय किया जाता था, और आज की लोकतांत्रिक राजनीति में भी इस तारीख़ को लेकर पर्दे के पीछे चर्चाएं होती रहती हैं.


नीतीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, NDA के नेता और विपक्ष सबके लिए यह क्षण प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि ऊर्जा का आरंभिक बिंदु होता है. जनता के सामने मंच पर भले चेहरों के हावभाव हों, लेकिन परंपरा कहती है कि असली खेल उस पल की आकाशीय स्थिति तय करती है जिसमें सरकार शपथ लेती है.


मुहूर्त चिंतामणि जैसे ग्रंथों में राजकीय कार्यों के लिए अलग से निर्देश दिए गए हैं. इनमें यह माना गया है कि शपथ, ताजपोशी, राजधानी-परिवर्तन और युद्ध-घोषणा जैसे काम ऐसे समय में होने चाहिए जिनमें वृद्धि, स्थिरता और सुरक्षा का संकेत हो.


यदि शुरुआत ही अशांत समय में हो जाए जहां चंद्र कमजोर हो, राहु-केतु का दबाव हो, या समय विवाद-प्रवृत्ति वाले नक्षत्र में आ जाए तो सत्ता आगे चलकर अंदरूनी तनाव, अविश्वास, गठबंधन-विग्रह, या जन-असंतोष का सामना करती है. हालांकि यह कोई राजनीतिक गारंटी नहीं, लेकिन इतिहास में कई उदाहरण हैं जहां शपथ के समय की प्रकृति बाद के राजनीतिक माहौल से मेल खाती दिखाई दी.


बिहार इसका जीवंत उदाहरण है. नीतीश कुमार ने पिछले दो दशकों में कई बार शपथ ली है और हर शपथ के बाद राजनीति का रंग बदल गया. 2010 का कार्यकाल अपेक्षाकृत स्थिर माना गया क्योंकि वह एक संतुलित समय में शुरू हुआ था, जबकि 2017 में सत्ता परिवर्तन ऐसे समय में हुआ जिसमें ग्रह-स्थिति तनावपूर्ण थी परिणामस्वरूप साढ़े एक साल में व्यवस्था हिल गई और नया राजनीतिक मोड़ आ गया. यह सब दिखाता है कि बिहार जैसे राज्य में शपथ का पल एक अक्सर निर्णायक संकेत छोड़ जाता है.


पटना के राजभवन पर होने वाली शपथ के पीछे सिर्फ स्थानीय समीकरण नहीं हैं. दिल्ली की राजनीति, प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका, एनडीए का दबाव और विपक्ष की रणनीति उस पल के राजनीतिक तापमान को तय करते हैं.


मुहूर्त की परंपरा यह मानती है कि अगर सूर्य और गुरु मजबूत हों तो केंद्रीय सत्ता का प्रभाव बढ़ता है और अगर चंद्र कमजोर हो तो जनता का मूड जल्दी पलटता है. इस दृष्टि से देखें तो शपथ की तारीख़ 20 नवंबर सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि पटना और दिल्ली के बीच शक्ति-संतुलन भी तय करती है.


अगर 20 नवंबर 2025 जैसी तारीख़ में शपथ गुरुवार, अमावस्या-उपरांत या अनुराधा-रोहिणी जैसे सहयोगी नक्षत्र में होती है, तो परंपरागत मान्यता इसे स्थिर सरकार का संकेत मानती है. ऐसी शुरुआतों में गठबंधन की आंतरिक खींचतान धीरे-धीरे कम होती है और सरकार अपने ढांचे में सिमटकर चलने लगती है.


लेकिन यदि शपथ ऐसे समय में हो जब ग्रहों का दबाव अधिक हो, नक्षत्र कठोर हो या चंद्र कमजोर हो तो यह वही स्थिति बनती है जिसे मुहूर्त-परंपरा आरंभ में ही कलह की भूमि कहती है बाहर समारोह की मुस्कान, लेकिन भीतर धीरे-धीरे पैदा होती असहमति.


विपक्ष के लिए भी यह शुरुआत महत्वपूर्ण होती है. अगर सरकार एक संतुलित समय में जन्म ले, तो विपक्ष पहली भिड़ंत में असरदार चेहरा नहीं बन पाता लेकिन यदि समय अशांत हो, तो विपक्ष छोटे विवादों को बड़ा रूप देकर शुरुआती महीनों में ही सत्ता की ऊर्जा को कमजोर कर सकता है.


लोकतंत्र का सच यही है कि सरकार की सफलता जनता, नीतियों और सिस्टम पर निर्भर करती है. लेकिन मुहूर्त इतना जरूर बताता है कि शुरुआत किस हवा में हो रही है और कई बार शुरुआती हवा ही आगे की दिशा बदल देती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.