दुनिया की कुल आबादी 800 करोड़ के पार है. Worldometer की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है और दूसरे नंबर पर इस्लाम धर्म को मानने वाले मुसलमानों की है. हालांकि, इस बीच दावा किया जाता है कि दुनिया के कई देशों मे मुसलमानों की स्थिति खराब है. अगर भारत के पड़ोसी मुल्क चीन में रहने वाले मुसलमानों की बात करें तो वहां उइगर मुस्लिम कहते हैं.
उइगर मुसलमान तुर्क मूल का समुदाय है, जो मुख्य रूप से चीन के शिनजियांग प्रांत में रहता है. अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन में इनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर पाबंदियां हैं. लाखों उइगर मुसलमानों को कथित तौर पर री-एजुकेशन कैंप में भेजा जाता है. इन कैंप का उद्देश्य उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करना बताया जाता है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिदों पर नियंत्रण, धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक और लगातार निगरानी इनके मूलभूत अधिकारों को सीमित करती है. चीन इन आरोपों से इनकार करता है और इन्हें डि-रेडिकलाइजेशन प्रोग्राम्स कहता है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इन्हें मानवाधिकार उल्लंघन माना जा रहा है.
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान
रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखाइन राज्य में सदियों से रहते आए हैं, लेकिन म्यांमार सरकार ने इन्हें नागरिकता नहीं दी. इससे यह समुदाय सबसे अधिक हाशिए पर आ गया है. 25 अगस्त 2017 को रोहिंग्या लोगों पर बड़े पैमाने पर हमले हुए, जिसे रोहिंग्या नरसंहार दिवस के रूप में याद किया जाता है. इस हिंसा में हजारों लोग मारे गए और लाखों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा. आज भी लाखों रोहिंग्या बांग्लादेश, भारत और अन्य देशों में शरणार्थी के रूप में जीवन बिता रहे हैं. उनकी स्थिति एक बड़े मानवीय संकट का प्रतीक बन चुकी है.
फ्रांस और यूरोप में मुस्लिम समुदाय
फ्रांस में मुस्लिम समुदाय को खासतौर पर धार्मिक प्रतीकों जैसे हिजाब पर पाबंदियों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि रोजगार और आवास में मुसलमानों को भेदभाव झेलना पड़ता है. आतंकवादी घटनाओं के बाद बने कठोर कानूनों ने मुस्लिम समुदाय की स्थिति और कठिन कर दी है. जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों में भी मुसलमानों को रोजगार के कम अवसर मिलते हैं और समाज में स्वीकार्यता पाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
इजरायल और फिलिस्तीन में स्थिति
फिलिस्तीनी मुसलमानों की स्थिति दुनिया में सबसे जटिल मानी जाती है. ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि गाज़ा और वेस्ट बैंक में रह रहे फिलिस्तीनियों को दशकों से राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष झेलना पड़ रहा है. गाजा पट्टी में लगातार युद्ध, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक सीमित पहुंच सबसे बड़ी समस्या है. इसके साथ ही आवाजाही और स्वतंत्रता पर पाबंदियां लोगों की जिंदगी को और कठिन बना रही हैं. यह संघर्ष अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय संकट का रूप ले चुका है.
ये भी पढ़ें: भारत का राफेल या पाकिस्तान के करीबी सऊदी का यूरोफाइटर टाइफून, अगर आमने-सामने आए दोनों तो कौन सा होगा तबाह?
