मौजूदा समय में नेपाल में हिंसक प्रदर्शन चल रहा है, जिसकी वजह से पूरा देश जल रहा है. नेपाल में जारी विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व युवा कर रहे हैं, जिन्होंने सरकार की तरफ से किए जा रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ हल्ला बोल रखा है. नेपाल के इतिहास के बारे में बात करें तो इसका संबंध मुगलों से भी रहा है, जहां पर वह कभी राज नहीं कर पाए. इसके पीछे कई वजह हैं. नेपाल की भौगोलिक स्थिति एक नेचुरल किले की तरह काम करती थी. ऊंचे-ऊंचे हिमालयी पर्वत, गहरी घाटियां और संकरे दर्रे बाहरी आक्रमणकारियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थे. मुगल सेना विशाल घुड़सवार टुकड़ियों और भारी तोपखानों पर निर्भर थी. इस वजह से वह पहाड़ी युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं थी. मैदानों में वे आसानी से जीत हासिल कर लेते हैं, वहीं नेपाल की कठिन भौगोलिक संरचना उनके लिए असंभव बन गई.


मुगल साम्राज्य का विस्तार मुख्य रूप से उपजाऊ और व्यापारिक दृष्टि से समृद्ध इलाकों पर हुआ. गंगा-यमुना का दोआब, बंगाल, गुजरात और दक्कन आर्थिक दृष्टि से आकर्षक थे. इसके विपरीत नेपाल की कृषि क्षमता सीमित थी और वहां से साम्राज्य को पर्याप्त टैक्स या संसाधन नहीं मिल सकते थे. यही कारण रहा कि नेपाल उनके प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल नहीं था.


इतिहास के पन्नों में मुगल
अबुल फजल की किताब आइन-ए-अकबरी में नेपाल का उल्लेख व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों तक सीमित मिलता है. जे.एन. सरकार की History of Aurangzeb के अनुसार नेपाल कभी मुगलों के प्रत्यक्ष शासन में नहीं आया. नेपाली इतिहासकार बाबूराम आचार्य बताते हैं कि नेपाल ने सदैव अपनी संप्रभुता बनाए रखी और व्यापारिक समझौतों के माध्यम से संबंध को बनाए रखने का काम किया.


नेपाली राज्यों की रणनीतिक समझदारी
नेपाल उस समय कई छोटे-छोटे राज्यों काठमांडू, भक्तपुर और ललितपुर में बंटा हुआ था. ये आपस में संघर्ष करते रहते थे, लेकिन बाहरी आक्रमण के समय एकजुट होकर सामना करते थे. स्थानीय किलों और पहाड़ी रास्तों पर उनका नियंत्रण मजबूत था. यही वजह थी कि नेपाल ने व्यापारिक संबंध बनाए रखे, लेकिन राजनीतिक अधीनता कभी स्वीकार नहीं की.


तिब्बत और हिमालयी व्यापार मार्ग का महत्व
नेपाल भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का सेतु था. नमक, ऊन, मसाले और धातुओं का आदान-प्रदान यहीं से होता था. मुगलों के लिए यह व्यापार मार्ग महत्वपूर्ण था, लेकिन वे तिब्बत तक सीधी पहुंच नहीं बना पाए, इसलिए नेपाल से टकराव के बजाय उनके साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखना ही बेहतर नीति थी.


सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की रक्षा
नेपाल का समाज हिन्दू और बौद्ध परंपराओं से गहराई से जुड़ा था. बाहरी मुस्लिम सत्ता की अधीनता वहां की जनता के लिए सांस्कृतिक खतरा मानी जाती थी. यही कारण था कि नेपाली शासकों ने हमेशा स्वतंत्रता और प्रतिरोध को प्राथमिकता दी. मुगलों की ताकत घुड़सवार सेना और तोपखाने में थी, लेकिन नेपाल का भूगोल इस सैन्य सिस्टम के लिए अनुपयुक्त था. वहीं, गोरखा योद्धा गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे. यह युद्धकला मुगलों के अनुभव से बाहर थी. अगर वे नेपाल में अभियान छेड़ते भी तो भारी नुकसान उठाना पड़ता.


अन्य सामरिक प्राथमिकताएं
मुगल साम्राज्य को अफगान, ईरानी, मराठा और असम जैसे कई मोर्चों पर लगातार चुनौती मिलती रही थी, ऐसे में नेपाल जैसे कठिन भूभाग को जीतने का प्रयास उनके लिए रणनीतिक रूप से उचित नहीं था.


ये भी पढ़ें: आतंकी नेटवर्क पर NIA की बड़ी कार्रवाई: देशभर में 21 ठिकानों पर छापे, ISIS से जुड़े सबूत बरामद