Premanand Ji Maharaj Vachan: प्रेमानंद जी महाराज एक महान संत और विचारक हैं जो जीवन का सच्चा अर्थ समझाते और बताते हैं. प्रेमानंद जी के अनमोल विचार जीवन को सुधारने और संतुलन बनाएं रखने में मार्गदर्शन करते हैं.


प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि ध्यान का अर्थ है अखंड में ध्यान रहना, निरतंर ध्यान में रहना, अगर आप कुछ देर अपनी आँखें मूंद कर बैठे रहे तो उसे ध्यान नहीं कहा जाता, इसी प्रकार बगुला भी आंख मूंद कर खड़ा रह जाता है. इंद्रियों को काबू में कर लेना और परमात्मा में तन्मय हो जाने को ही ध्यान कहते हैं.


चलते फिरते, सोते जागते, उठते बैठते खाते पीते हर समय भगवान का ध्यान होना, ही ध्यान है. ध्यान का मतलब है चित्त वृत्ति का परमात्मा में तन्मय होगा. जागृत अवस्था में हमारी चित वृत्ति जैसे व्यक्ति, वस्तु, स्थान में जाती है. ऐसे में परमात्मा में स्थिर रहे मन वही ध्यान है. अगर 1 मिनट भी आपकी देह भाव रहित हो जाएंगे, तो आनंद युक्त होगा. नाम जप करें, और नाम जप का हर समय प्रयास करें. नाम जप को खाली समय में जरुर करें. चलते फिरते, सोते जागते, उठते बैठते खाते पीते हर समय नाम जप करो, भगवान के मंगलमय चरणों का ध्यान करें.



आकार में फंसे हैं तो आकार से छुटेंगे. आकार का चिंतन करो, निराकार स्वरुप जो है वो जागृत हो जाएगा. ध्यान का स्वरुप प्रभु श्री राम, श्री कृष्ण, शिव भगवान ऐसे होने चाहिए उनके रुप और नाम का चिंतन करते रहे. “मम दर्शन फल परम अनूपा जीव पाव निज सहज सरूपा” का मतलब है कि भगवान के दर्शन करने का परम फल यह है कि जीव अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाता है. जो शिव का स्वरुप है वो आपका स्वरुप है. 


एक ही पदति अपनाएं नाम, वो आपको आगे बढ़ाएगा.  गदगद सुर नेंना सजल, दंपति-रस रहै भीन।, वो चल रहा है तो अपने ध्यान में है, वो कार्यरथ है तो ध्यान में है. इसमे सामर्थ ऐसी होती है भगवान के भजन में की वह एक साथ दो कार्य कर सकता है. भगवान का चिंतन भी और भगवान का कार्य भी.  अर्जुन ने भगवान का स्मरण और युद्ध दोनों एक साथ किया था, यह कार्य हो सकता था तभी श्री कृष्ण भगवान ने यह आदेश दिया था. जल्दी-जल्दी ऐसा भजन करें, इस मनुष्य जीवन में आपका कल्याण हो, जीवन सार्थक हो जाए.



Premanand Ji Maharaj: क्या अपनों के प्रति मोह और आसक्ति भजन मार्ग में बाधा हैं? जानें प्रेमानंद जी महाराज के अनमोल वचन


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