भारतीय सेना ने अभी तक कई सफल ऑपरेशन्स को अंजाम दिया है. उसने अपने देश की रक्षा के साथ-साथ कई और देशों की भी मदद की है. भारत ने इसी तरह से एक बार मालदीव को 1988 में संकट की स्थिति से निकाला था. मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मामुन अब्दुल गयूम ने भारत से मदद मांगी थी. देश में तख्तापलट होने वाला था, लेकिन भारतीय सेना ने आतंकवादियों की कोशिश को नाकाम कर दिया था.
बात 1988 की है, नवंबर का महीना था. मालदीव के लोग बेफिक्री के साथ वक्त बिता रहे थे. उन्हें देश पर मंडरा रहे खतरे का अंदाजा तक नहीं था, लेकिन 3 नवंबर को जो हुआ, उसने पूरे मालदीव को हिलाकर रख दिया. पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOT) राजधानी माले पर अटैक कर दिया और देश में तख्तापलट की कोशिश में थे. देश के हालात देख तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से मदद मांगी.
मालदीव ने कई देशों से मांगी थी मदद
मालदीव ने मदद के लिए कई देशों के आगे हाथ फैलाया था, लेकिन कोई आगे नहीं आया. भारत ने मालदीव का साथ देते हुए अपनी एयरफोर्स को भेजा. भारतीय वायुसेना की पैराशूट रेजीमेंट 3 नवंबर 1988 की रात आगरा एयरफोर्स स्टेशन से रवाना हो गई. भारतीय जवानों के पहुंचने से पहले ही माले में आतंकियों ने लूटमार शुरू कर दी थी. एयरफोर्स ने पहुंचते ही सबसे पहले एयरपोर्ट को कब्जे में लिया.
चार फेज में बांटा गया ऑपरेशन
इस ऑपरेशन को चार फेज में बांटा गया, जिसके तहत दो फेज में एक टीम माले के साउथ वेस्ट में जाकर प्रेसिडेंट की सुरक्षा करेगी, जबकि तीसरे फेज में सभी टीमें हुलहुले में इकट्ठा होंगी. इसके बाद आखिरी फेज में माले के साथ-साथ राष्ट्रपति की सुरक्षा को मजबूत करना था.
एयरपोर्ट पर कब्जे के बाद भारतीय जवानों ने माले को आतंकियों को आजाद कराने का काम शुरू कर दिया. जवानों ने आतंकियों की तलाश शुरू की. इस दौरान पैराट्रूपर्स का कई जगहों पर आतंकियों से सामना हुआ, लेकिन जीत जवानों की ही हुई.
भारतीय जवानों ने कुछ ही घंटों में खत्म कर दिया ऑपरेशन
भारतीय वायुसेना के जवानों ने कुछ ही घंटों में इस ऑपरेशन को सफलता पूर्वक खत्म कर दिया. सुबह करीब 4 बजे जवानों ने नेशनल सर्विस हेडक्वार्टर पहुंचकर ब्रिगेडियर फारुख बिलसारा से प्रधानमंत्री राजीव गांधी को फोन लगाने के लिए कहा. फोन अब्दुल गयूम की राजीव गांधी से बात हुई. उन्होंने धन्यवाद कहा और आभार जताया.
