Lanka Story: रावण को पराजीत करना कठिन था जब तक भगवान् शिव और माता पार्वती लंका में निवासी करते थे. रावण ने भगवान् शिव और पार्वती माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर के लंका में रहने का आग्रह किया.


'बृहद्धर्म पुराण' में वर्णित रामायण कथा देवी-तन्त्र के द्वारा पूर्णतया प्रभावित हुआ है. इसके 18 वें अध्याय में वर्णन मिलता है कि शिव-पार्वती रावण की रक्षा के लिये लंका में निवास करते थे. उनके पास देवगण रावण के अत्याचार की कथा सुनाने के लिये गये. तब सीता के अपमान से क्षुब्ध होकर पार्वती ने लंका छोड़नेकी बात कही.


श्रीराम-काज की सिद्धि के लिये शिवजी ने हनुमान बनना स्वीकार किया एवं ब्रह्मा जी ने जाम्बवान् तथा धर्म ने विभीषण का रूप धारण किया. इस पुराणके 20वें अध्याय में हनुमानजी के शिवरूप होनेका प्रमाण प्रस्तुत किया गया है.


अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने चण्डिका-मन्दिर को देखा, तब अपने को शिवजी का रूप बतलाकर देवी से लंका छोड़ने के लिये आग्रह किया. हनुमानजी (शिव) ने अपने विश्वरूपका दर्शन कराया, जिसमें देवी ने रावणकी सेना को संकट में और श्रीराम की सेना को सफलरूप में देखा.


इस कथा का सार यही है की भगवान् भी आपका साथ छोड़ देते है अगर उसको आपके कृत्य अधर्म लगते हैं. महाभारत उद्योग पर्व  68.9 में भी कहा है की जहां धर्म है वही भगवान् श्रीकृष्ण का वास हैं. भागवत पुराण में कहा गया की


वेदप्रणिहितो धर्मोंहधर्मस्तद्विपर्ययः।


वेदे नारायणः साक्षात्स्वयम्भूरिति शुश्रुम॥


अर्थ – वेदों ने जिन कर्मो का विधान किया है और पालन करना अनिवार्य,वे धर्म हैं और जिनका निषेध किया है,वे अधर्म हैं. वेद स्वयं भगवान का स्वरूप हैं. वे उनके स्वाभाविक श्वास प्रश्वास  तथा स्वयंप्रकाश ज्ञान हैं. मनुस्मृति भी कहती है


मनुस्मृति कहती हैं


"वेदोखिलो धर्म मूलं। "


अर्थ – सम्पूर्ण धर्म का मूल वेद है, वेदों से ही धर्म को जाना जा सकता है।वेदों का विधान ही धर्म माना गया है.


चाणक्य नीती कहती हैं –


अनित्यानिशरीराणि,विभवो नैव शास्वत:। नित्यं सन्निहितो मृत्यु:, कर्तव्यो धर्मसंग्रह:।।


(चाणक्य नीति अध्याय 12,श्लोक12)


अर्थ – शरीर का नष्ट होना निश्चित है,धन संपत्ति सदैव साथ नहीं रह सकता, मृत्यु का समय कभी भी आ सकता है इसलिए अहंकार को छोड़कर धर्म का पालन करना चाहिए. एवं सभी का महत्त्व देते हुए जीवन यापन करना चाहिए.


मनुस्मृति और महाभारत में एक शलोक आता है –


धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः


तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्


अर्थ – जो धर्म की रक्षा करते है धर्म उसकी रक्षा करता हैं.


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