बिहार में चुनावी बिगुल फुंक चुका है. जिसे लेकर इलेक्शन कमीशन ने भी अपनी तैयारी पुख्ता कर ली हैं. जब भी चुनाव आता है तो आप एक नाम सबसे ज्यादा सुनते होंगे माइक्रो आब्जर्वर. लेकिन क्या आपको पता है आखिर ये होते कौन है और इनकी नियुक्ति कौन करता है. आइए आज हम आपको बताते हैं...
लोकसभा से लेकर विधानसभा और पंचायत चुनावों तक, हर चरण में लाखों अधिकारी और कर्मचारी अपनी ड्यूटी निभाते हैं. इन्हीं में एक अहम भूमिका होती है पर्यवेक्षक. माइक्रो आब्जर्वर आमतौर पर केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारी होते हैं. चुनाव आयोग इन्हें विशेष रूप से नियुक्त करता है.
इन पदों के लिए वही सरकारी कर्मचारी चुने जाते हैं जो ग्रुप-सी या उससे ऊपर के पद पर कार्यरत हों. चुनाव आयोग इन अधिकारियों को मतदान केंद्रों पर भेजता है ताकि वो पूरी प्रक्रिया पर करीबी नजर रख सकें और यह सुनिश्चित कर सकें कि चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो रहा है.
क्या होता है काम?
माइक्रो ऑब्जर्वर को मतदान केंद्रों पर इसलिए तैनात किया जाता है ताकि वो यह सुनिश्चित कर सकें कि मतदान प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष, स्वतंत्र और शांतिपूर्ण हो.
- क्या मतदान केंद्र पर ईवीएम सही तरह से सील की जा रही है?
- क्या हर मतदाता की पहचान सही तरीके से की जा रही है?
- क्या मतदाता के हाथ पर चुनावी स्याही लगाई जा रही है?
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कितना मिलेगा मानदेय?
रिपोर्ट्स के अनुसार माइक्रो ऑब्जर्वर को उनके काम के लिए एक दिन की ड्यूटी का मानदेय 2,000 रुपये दिया जाता है. इसके साथ ही उन्हें यात्रा भत्ता (Travel Allowance) यानी आने-जाने का खर्च भी अलग से मिलता है. अगर अधिकारी को दूर के मतदान केंद्र पर भेजा जाता है तो उसके खाने-रहने की व्यवस्था भी प्रशासन की ओर से की जाती है. मतदान की पूरी प्रक्रिया आमतौर पर एक से दो दिन की होती है.
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