हिंदू धर्म में शक्तिपीठ देवी पूजा के पवित्र स्थल हैं, जो देवी सती की अपार शक्ति से भरपूर हैं. माना जाता है कि जब देवी ने दक्ष-यज्ञ में अपनी जान दे दी थी, तब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे. उन्हें शांत करने के लिए, भगवान विष्णु ने उनके शरीर को 51 टुकड़ों में विभाजित कर दिया था. देवी सती के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे, वे पवित्र तीर्थस्थल बन गए. यहां आज भी देवी सती की शक्ति महसूस होती है. इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ कम चर्चित हैं, लेकिन उनका महत्व और शक्ति उतनी ही है जितनी अन्य की. इस लेख में हम आपको ऐसे ही 5 शक्तिशाली लेकिन कम चर्चित शक्तिपीठों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आपको जरूर जाना चाहिए.


चंडिका स्थान, बिहार


यह मंदिर बिहार में स्थित है और इसे देवी सती की बाईं आंख के गिरने का स्थान माना जाता है. भक्तों का मानना है कि यहां काजल या केसर-युक्त दूध चढ़ाने से नेत्र रोग और मोतियाबिंद जैसी समस्याएं ठीक होती हैं. नवरात्रि के दौरान, खासकर अष्टमी के दिन भक्त गहन एकाग्रता से पूजा करते हैं.


नारतियांग की मां जयंती, मेघालय


यह मंदिर मेघालय की धुंध भरी पहाड़ियों में स्थित है. यहां देवी सती की बाईं जांघ गिरी थी, इसलिए इसे मां जयंती शक्ति पीठ भी कहते हैं. इस मंदिर का 19वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण किया गया था. यहां स्थापित अष्टधातु की मूर्ति आज भी अपनी पौराणिक शक्ति का संचार करती है.


श्रींकला देवी मंदिर, पश्चिम बंगाल


यह मंदिर पश्चिम बंगाल में हुगली के पास पांडुआ में स्थित है. माना जाता है कि देवी का उदर यहां गिरा था, लेकिन यहां कोई मंदिर नहीं, बस एक मध्ययुगीन मीनार खड़ी है. फरवरी में, यहां एक महीने तक चलने वाला मेला लगता है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों एक साथ आकर पूजा-अर्चना करते हैं, जो इसे एक अनोखा त्योहार बनाता है.


विशालाक्षी मंदिर, वाराणसी


यह मंदिर काशी विश्वनाथ के पास गंगा नदी के किनारे है. माना जाता है कि यहां देवी सती की कान की बाली या उनके तीन नेत्रों में से एक गिरा था. चूंकि देवी यहां विशाल आंखों वाली हैं, इसलिए उन्हें विशालाक्षी कहते हैं. यहां भक्त फर्टिलिटी, विवाह या दुर्भाग्य से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना करने आते हैं.


श्रीशैलम शक्ति पीठ, आंध्र प्रदेश


यह शक्ति पीठ भ्रमराम्बा शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है और यह 18 महाशक्तिपीठों में से एक है. यह मंदिर इसलिए खास है, क्योंकि यह उन कुछ जगहों में से है जहां शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग दोनों एक साथ हैं. आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित इस मंदिर में देवी का कंठ या ऊपरी होंठ गिरा था.


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