अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब से दूसरी बार सत्ता में आए हैं, तब से उनकी नीतियों की दुनियाभर में चर्चा हो रही है. उनकी टैरिफ नीति को लेकर भी दुनियाभर के नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. नई नई पॉलिसी से अब वहां के नागरिक भी परेशान हो गए हैं. दरअसल, भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो जल्द यूएस छोड़ सकते हैं.
स्विट्जरलैंड की इस यूनिवर्सिटी से जुड़ेंगे नोबेल विजेता
कहा जा रहा है कि उनके फैसले के पीछे ट्रंप की सख्त नीतियां हैं. दोनों ने अपना नया आशियाना स्विट्जरलैंड में बसाने का फैसला किया है. नोबेल विजेता अब स्विट्जरलैंड की ज्यूरिख यूनिवर्सिटी से जुड़ने वाले हैं. इस बारे में यूनिवर्सिटी ने शुक्रवार को एक बयान जारी किया. हालांकि अमेरिका छोड़ने की असली वजह अभी सामने नहीं आई है.
ज्यूरिख यूनिवर्सिटी ने अपने बयान में क्या कहा?
ज्यूरिख यूनिवर्सिटी ने अपने बयान में कहा कि अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो फिलहाल फिलहाल MIT में काम कर रहे हैं. वह जुलाई 2026 से यूनिवर्सिटी की अर्थशास्त्र फैकल्टी में शामिल होंगे. यूनिवर्सिटी के चीफ माइकल शैपमैन ने इसे लेकर कहा कि हमें ये घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि दुनिया के दो सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री UZH में आ रहे हैं.
2019 में मिला था नोबेल पुरस्कार
बता दें कि डुफ्लो और बनर्जी को 2019 में माइकल क्रेमर के साथ अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें वैश्विक तौर पर गरीबी दूर करने के लिए आइडिया के लिए ये पुरस्कार दिया गया था. हालांकि, उन्होंने अमेरिका छोड़ने का फैसला क्यों लिया है, इस पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है.
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप की फंडिंग में कटौती और विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमलों की वजह से ब्रेन ड्रेन बढ़ सकता है. मार्च के महीने में अमेरिकी-फ्रांसीसी नागरिक एस्टर डुफ्लो ने Le Monde में इस पर अपनी चिंता जताई थी.
अभिजीत और एस्टर डुफ्लो के बारे में जानें
अभिजीत बनर्जी भारतीय मूल के अर्थशास्त्री हैं. उन्होंने अपनी शिक्षा भारत और अमेरिका दोनों में प्राप्त की. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. करने के बाद उन्होंने MIT में अर्थशास्त्र पढ़ाया. उनका शोध मुख्य रूप से गरीबी को कम करने की नीतियों पर केंद्रित है.
एस्टर डुफ्लो फ्रांस की अर्थशास्त्री हैं, जिनकी रुचि बचपन से ही गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में रही. उन्होंने पेरिस में पढ़ाई की और बाद में MIT से अर्थशास्त्र में डिग्री ली. दोनों ने मिलकर रैंडम नियंत्रित प्रयोगों (Randomized Controlled Trials) का उपयोग किया ताकि यह समझा जा सके कि गरीबी दूर करने में कौन-सी योजनाएं सबसे प्रभावी हैं. इस योगदान के लिए उन्हें 2019 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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