अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (19 सितंबर, 2025) को एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया, जिसके तहत एच1बी वीजा शुल्क बढ़ाकर सालाना 1,00,000 अमेरिकी डॉलर (88 लाख रुपए) किए जाने का प्रावधान है. इसी शुल्क के लिए पहले 10,000 डॉलर (8 से 10 लाख) तय किया गया था. ट्रंप के इस कदम से अमेरिका में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है.
वहीं ट्रंप के इस फैसले को अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक सही ठहराते हुए नजर आए. उन्होंने कहा, 'क्या वह व्यक्ति इतना कीमती है कि कंपनी सरकार को 1,00,000 डॉलर हर साल दे. यही तो इमिग्रेशन का मकसद है. अमेरिकियों को नौकरी पर रखें, यह सुनिश्चित करें कि आने वाले लोग टॉप टैलेंट हों. राष्ट्रपति का रुख बिल्कुल साफ है. टॉप टैलेंट सिर्फ अमेरिका के लिए है, बकवास बंद करो.'
काबिल लोग ही अमेरिका में पाएं प्रवेश
हॉवर्ड लुटनिक ने जोर देते हुए कहा, 'ट्रंप की इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल काबिल लोग ही प्रवेश पाएं. कंपनी को फैसला करना होगा. क्या वे ऐसा चाहते हैं, क्या व्यक्ति इतना मूल्यवान है कि उसे सरकार को सालाना एक लाख डॉलर का भुगतान मिले, या उसे घर लौट जाना चाहिए और अमेरिका में और भी ऊंचा मुकाम हासिल करना चाहिए?'
उन्होंने कहा, 'अगर किसी को प्रशिक्षण देना है तो हमारे देश के अच्छे विश्वविद्यालयों से पढ़ाई पूरी करने वाले युवाओं को दें, अमेरिकियों को प्रशिक्षण दें. बाहर से लोगों को लाकर हमारी नौकरियां मत छीनो.'
विदेशी टैलेंट पर निर्भर तकनीकी कंपनियां
एच-1बी वीजा को लेकर ट्रंप पहले से ही सवाल उठाते रहे हैं. यह वीजा खासकर तकनीकी कंपनियों के लिए अहम है, क्योंकि वे विदेशी टैलेंट पर बहुत निर्भर रहती हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करीब दो-तिहाई एच-1बी वीजा वाले लोग कंप्यूटर और टेक से जुड़े कामों में होते हैं. हालांकि, इस वीजा का इस्तेमाल इंजीनियरों, शिक्षकों और स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए भी होता है.
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