भारत ने 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) निलंबित करने पर पाकिस्तान की आपत्तियों को सख्ती से खारिज कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के जिनेवा सत्र में भारतीय राजनयिक अनुपमा सिंह ने कहा कि स्थायी सहयोग विश्वास पर टिका होता है, आतंकवाद पर नहीं.


संधि पर भारत का स्पष्ट संदेश


अनुपमा सिंह ने कहा कि 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि सद्भावना और मित्रता की भावना से हुई थी, लेकिन आज का समय बिल्कुल अलग है. उन्होंने कहा, "1960 की दुनिया आज की दुनिया नहीं है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद लगातार इस संधि की मूल भावना को खोखला कर रहा है."


पाकिस्तान पर सीधा हमला


भारतीय प्रतिनिधि ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह परिषद की कार्यवाही को बार-बार राजनीतिक रंग देने की कोशिश करता है, जबकि उसका खुद का रिकॉर्ड संधि के सिद्धांतों के उल्लंघन से भरा पड़ा है. उन्होंने कहा, "जो देश लगातार और जानबूझकर संधि की मूल भावना का उल्लंघन करता है, उसे दूसरों पर आरोप लगाने का कोई हक नहीं."


जल संकट से जूझ रहा पाकिस्तान


भारत ने 23 अप्रैल को संधि निलंबित की थी, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसारन घाटी में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय पोनी संचालक की हत्या कर दी थी. भारत के इस कदम के बाद पाकिस्तान में गंभीर जल संकट खड़ा हो गया है. रिपोर्टों के मुताबिक, पाकिस्तान के दोनों बड़े जलाशय मृत स्तर (dead storage level) पर पहुंच गए हैं और कृषि उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई है.


विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई थी संधि


1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई सिंधु जल संधि को भारत-पाक संबंधों में सहयोग का प्रतीक माना जाता रहा है. इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों, रावी, ब्यास और सतलुज पर नियंत्रण दिया गया, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार मिला. 


पीएम मोदी का दो टूक बयान


बता दें कि पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई में राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था, "पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते."


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